किसने की मंदिर की स्थापना और कैसे सुलभ हुआ दर्शन का रास्ता
Thekhabrilal News India Desk-त्रिकूट पर्वत पर विराजमान मां शारदा 52 शक्तिपीठ में से एक हैं। ऐसी कई कथाएं प्रचलित हैं, जिसमें मैहर का नाम माता सती के हार से जोड़ा जा रहा है। इस मंदिर के बारे में दूसरा कथानक यह भी है कि मंदिर की खोज माता के अनन्य भक्त अमरत्व का वरदान प्राप्त बुंदेलखंड के पराक्रमी योद्धा आल्हा और ऊदल ने की थी। जिसे जनसुलभ बनाने का काम मैहर रियासत के राजा दुर्जन सिंह जूदेव ने बनाया। कहा जाता है कि जब उन्हें मां शारदा धाम के बारे में पता चला तो उन्होंने 1820 में अपना तुलादान करवाया। तुलादान से जुटाई गई धनरात्रि से श्रद्धालुओं के लिए मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढिय़ों, मां की पूजा के जल के लिए बावली और श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए धर्मशालाओं का निर्माण कराया। कहा जाता है कि आज भी इस मंदिर में पहली पूजा माता के परम पुजारी दोनों भाई आल्हा-ऊदल ही करते हैं। इस बात का प्रमाण इस आधार पर दिया जाता है कि जब भी मंदिर के पुजारी सुबह मां की पूजा के लिए पट खोलते हैं तो मां के चरणों में ताजे पुष्प अर्पित मिलते हैं। ऐसे में धर्मावलंबियों का मानना है कि आल्हा और उनके छोटे भाई ऊदल यहां पर नित्य पूजा करने पहुंचते हैं।
क्या है नामकरण की कहानी

प्रचलित कथाओं में इस बात का जिक्र है कि जब माता सती ने अपना शरीर त्याग किया तब भगवान शिव ने माता सती के शव को उठाकर घूमना प्रारंभ कर दिया। तभी भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता के शरीर को 52 टुकड़ों में विभक्त कर दिया। जहां-जहां पर अंग, आभूषण गिरे वहां पर शक्तिपीठ की स्थापना की गई। इसी क्रम में माता के गले का हार त्रिकूट पर्वत में गिरा। जिसके आधार पर स्थान का नामकरण माई के हार यानी मैहर के तौर पर हो गया।
कैसे सुलभ हुए माता के दर्शन
त्रिकूट पहाड़ी पर मां शारदा की भक्ति में जुटे आल्हा को यहां साक्षात देवी ने दर्शन दिए। इसके बाद स्थान की ख्याति धीरे-धीरे बढऩे लगी। कछवाह वंश के महाराज वेनी सिंह जूदेव ने मैहर रिसायत की स्थापना की। इनके पुत्र दुर्जन सिंह जूदेव परकोटा बनाकर मैहर को सुरक्षित किया। पहाड़ों से घिरे इलाके में सीढिय़ों का निर्माण कराया। इसके बाद लोगों के लिए माता के दर्शन सुलभ हुए। आज से लगभग डेढ़ दशक पहले मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढिय़ां की एकमात्र विकल्प हुआ करती थीं। इसके बाद रोपवे और पहाड़ी के पिछले भाग से कार ले जाने की सुविधा बढ़ी।
क्या है नलतरंग की कहानी
मैहर घराने का प्रमुख वद्ययंत्र नलतरंग भी माता के दरवार से जुड़ा है। कहा जाता है कि कछवाह वंश के राजा बृजनाथ सिंह जूदेव ने संगीत सम्राट बाबा अलाउद्दीन खां को मैहर में बसाया था। वे प्रतिदिन नमाज के बाद मां शारदा के दर्शन करने सीढिय़ों से होकर जाते थे। साल 1934 के आसपास जब वह मां शारदा का दर्शन कर लौट रहे थे तभी लोहे का एक टुकड़ा (नली जैसा) उनके पैर से टकराया। सीढिय़ों से नीचे गिरने पर एक आकर्षक ध्वनि सुनाई दी। तब बाबा ने महाराज को इस घटना के बारे में बताया। कहा जाता है तब महाराज ने कई बंदूकों की नालो को कटवाकर बाबा को सौंपी जिसके बाद नए वाद्ययंत्र नलतरंग का प्रादुर्भाव हुआ।