Sarpanchship Mortgaged In Neemuch : मध्य प्रदेश के नीमच जिले से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां ग्राम पंचायत दाता की निर्वाचित महिला सरपंच ने ₹500 के स्टांप पर अनुबंध कर अपने सारे अधिकार गांव के ही एक व्यक्ति को सौंप दिए। जैसे ही यह मामला सामने आया, प्रशासन में हड़कंप मच गया। क्या यह सत्ता की सौदेबाजी है या किसी दबाव का नतीजा? देखिए हमारी यह खास रिपोर्ट।

MP News In Hindi : यह है मध्य प्रदेश के नीमच जिले की मनासा तहसील का ग्राम पंचायत दाता। यहां की निर्वाचित सरपंच कैलाशी बाई ने अपने पद और अधिकारों को ₹500 के स्टांप पर अनुबंध कर गांव के ही सुरेश गरासिया नामक व्यक्ति को सौंप दिए। अनुबंध में साफ तौर पर लिखा गया कि वह अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हैं, इसलिए अब पंचायत के सभी कार्य सुरेश ही देखेंगे। इतना ही नहीं, सरपंच ने यह भी लिख दिया कि वह जहां भी कहेंगे, वहां वह साइन कर देंगी। जब इस पूरे मामले की पड़ताल करने के लिए मीडिया टीम ग्राम पंचायत दाता पहुंची, तो पंचायत भवन में ताले लगे मिले। सरपंच और सचिव का कोई अता-पता नहीं था, यहां तक कि उनका मोबाइल भी स्विच ऑफ था। इस मामले में प्रशासन की भूमिका और निगरानी भी सवालों के घेरे में आ गई है।

प्रशासन की प्रतिक्रिया: ‘यह पूरी तरह अवैध’
जिला पंचायत सीईओ अमन वैष्णव ने इस मामले को अवैध करार दिया। उन्होंने कहा,
“सरपंच अपने अधिकार किसी और को नहीं सौंप सकते। हमने जांच के आदेश दिए हैं और सरपंच को धारा 41 के तहत पद से हटाने का नोटिस भी भेजा है।” इस बयान के बाद यह साफ हो गया कि प्रशासन इस मामले को गंभीरता से ले रहा है और जल्द ही कार्रवाई की संभावना है।
24 जनवरी को हुआ अनुबंध, गवाहों के हस्ताक्षर भी मौजूद
सूत्रों के मुताबिक, यह अनुबंध 24 जनवरी 2024 को किया गया था। इसमें गांव के सदा राम और मनालाल गवाह के रूप में मौजूद थे। अनुबंध में साफ लिखा गया कि मनरेगा, पीएम आवास, वाटरशेड सहित सभी सरकारी कार्यों की देखरेख सुरेश गरासिया करेंगे। इतना ही नहीं, अगर इस शर्त का उल्लंघन होता है, तो चार गुना हर्जाना भरने की बात भी कही गई है।

सरपंच के पति और सुरेश गरासिया का बयान
जब मीडिया ने इस मामले पर सरपंच के पति जगदीश कच्छावा से बातचीत की, तो उन्होंने दावा किया कि, यह अनुबंध केवल निर्माण कार्यों को लेकर किया गया है, न कि सरपंची के अधिकारों को लेकर। वहीं, सुरेश गरासिया ने भी कोई अनुबंध होने से इनकार कर दिया। उनका कहना था कि वह ठेकेदार हैं और पंचायत में ठेकेदारी का काम करते हैं।
क्या यह सत्ता की सौदेबाजी है?
- इस पूरे मामले से कई सवाल उठते हैं:
- क्या सरपंच ने यह अनुबंध अपनी मर्जी से किया, या किसी दबाव में?
- क्या यह सिर्फ निर्माण कार्यों से जुड़ा मामला है, या फिर पंचायत के अधिकारों की गैरकानूनी सौदेबाजी?
- प्रशासन ने अब तक इस पर कोई सख्त कदम क्यों नहीं उठाया?
- क्या ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कोई ठोस कानून बनाए जाएंगे?
यह मामला लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक गंभीर चुनौती पेश करता है। यदि निर्वाचित प्रतिनिधि ₹500 के स्टांप पर अपने अधिकार बेचने लगें, तो इससे ग्राम स्तर पर प्रशासनिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस मामले में क्या कार्रवाई करता है और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं