
रिपोर्ट : अवनीश उपाध्याय
आजमगढ़ : चाइना से लेकर जापान तक कोरोना वायरस के कहर से सहमें हैं। पूरी दुनिया में कोरोना को लेकर एलर्ट घोषित है लेकिन यूपी में सीएम योगी के डाक्टर है कि उन्हें कोई परवाह ही नहीं है। चाइना से 17 जनवरी को वापस आया एक युवक पिछले चार दिनों से बुखार से पीड़ित है। वह खुद ही चल कर अस्पातल पहुंचा लेकिन चिकित्सक उसे भर्ती करने के बजाय आपस में भिड़ गए। विवाद बढ़ा तो सीएमओ कार्यालय से टीम आयी और ब्लड सेंपल लेने के बाद उसे घर भेज दिया। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर संदिग्धों के लिए वार्ड बनाने का मतलब क्या है?, खुद शासन का निर्देश है कि ऐसे मरीजों की पूरी निगरानी की जाय लेकिन यहां ऐसा नहीं हुआ। अगर चाइना से आया उक्त युवक का ब्लड सेंपल प्वाजटिब निकला या उसकी वजह से कोई और संक्रमित हुआ तो इसका जिम्मेेदार कौन होगा।
बताया जा रहा है कि जिले के एक गांव निवासी एक युवक चाइना में रहकर पढ़ाई करता था। वह 17 जनवरी को चीन से भारत लौटा है। युवक के मुताबिक चार दिन से उसे सर्दी, बुखार व खिंचवा की समस्या है। जब उसने निजी अस्पतालों में बताया कि वह चाइना से आया है तो लोग उपचार के लिए तैयार नहीं हुए। संक्रमण से ग्रसित युवक आज जिला अस्पताल पहुंचा। यहां उसने इमरजेंसी में दिखाया तो उसे आईसीयू के पास बने कोरोना वार्ड में भेज दिया गया। यहां मरीज को देखने को लेकर जिला अस्पताल में तैनात डाक्टर आपस में भिड़ गये। कारण कि चाइना और कोरोना के शक के कारण चिकित्सक उस मरीज को देखना नहीं चाहते थे। विवाद इतना बढ़ गया कि मामला सीएमओ तक पहुंच गया। सीएमओ ने एक टीम भेजा और उसने सेंपल लेने के बाद मरीज को घर भेज दिया। जबकि शासन का स्पष्ट निर्देश है कि किसी भी संदिग्ध को तत्काल भर्ती किया जाय लेकिन यहां शासन की मंशा के विपरीत 50 लाख आबादी को खतरे में डाला जा रहा है।
वैसे कोरोना वार्ड के इन्चार्ज डाक्टर मुकेश जायसवाल ने किसी तरह के विवाद से इन्कार किया है लेकिन यह जरूर स्वीकार किया कि मरीज अस्पताल में आया था। डा. मुकेश के मुताबिक उक्त युवक 15 दिन पहले चाइना से घर आया था। एयरपोर्ट पर उसकी जांच हो चुकी थी। उसे सर्दी हुई थी लेकिन जब वह यहां आया तो उसका परीक्षण किया गया तो उसमें कोई ऐसा लक्षण नहीं मिला जो संदिग्ध हो। चुंकि वह यहां पर आया था इसलिए उसका सेंपल लिया गया और जांच के लिए भेजा गया है। ब्लड और थ्रोट सेंपल की जांच हो रही है। शासन के निर्देश कि अगर कोई संदिग्ध आता है तो उसे तत्काल एडमिट किया जाएगा और उसे तब तक डिस्टार्ज नहीं किया जाएगा। उसकी रिपोर्ट नहीं के सवाल पर उन्होंने कहा कि जब उसमें कोरोना का लक्षण ही नहीं था तो एडमिट करने का कोई मतलब नहीं था। सिर्फ एहतियात के तौर पर उसका सेंपल लिया गया है।
अब सच क्या है यह तो जांच रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा लेकिन इस घटना ने स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया है।