Wednesday, August 20, 2025
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व्हाइट टाइगर सफारी में टीपू की मौत

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White Tiger Safari : विश्व की पहली ओपन व्हाइट टाइगर सफारी मुकुंदपुर में मंगलवार दोपहर सफेद बाघ टीपू की मौत हो गई। 2023 में उसे राष्ट्रीय उद्यान नई दिल्ली से महाराजा मार्तंड सिंह जूदेव व्हाइट टाइगर सफारी एंड जू मुकुंदपुर लाया गया था।

The Khabrilal Desk : पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि टीपू की मौत किडनी फेल होने से हुई।
सफारी प्रबंधन के अनुसार, 11 वर्षीय यह नर बाघ पिछले तीन माह से बीमार था और लगातार उपचार चल रहा था। टीपू के इलाज के लिए जबलपुर एसडब्लूएफएच के डॉ. अमोल रोकड़े, वेटनरी कॉलेज रीवा की वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक डॉ. कंचन वालवाडकर तथा बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के वन प्राणी स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. राजेश तोमर सहित विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम लगी हुई थी। हालत बिगड़ने पर उसे एक सप्ताह पहले ICU में रखा गया था। सभी प्रयासों के बावजूद मंगलवार दोपहर 1:54 बजे उसने अंतिम सांस ली।

पहली जांच में मृत्यु का कारण क्रॉनिक किडनी फेल्योर पाया गया है।

वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में शव परीक्षण किया गया। प्रथम दृश्य में मौत का कारण क्रॉनिक किडनी फेल्योर पाया गया। हालांकि मृत्यु के कारणों की विस्तृत जांच के लिए अंगों के सैंपल सुरक्षित रखे गए हैं। चिकित्सा दल ने बाघ की 100 फीसदी जांच की और रिपोर्ट वन विभाग को सौंपी गई है। मृत्यु के कारणों की विस्तृत जांच के लिए अंगों के सैंपल सुरक्षित रखे गए हैं। शव परीक्षण उपरांत वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में अंतिम कार्रवाई पूरी की गई। अब मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी में सिर्फ तीन सफेद बाघ—रघु, सोनम और मोहन ही बचे हैं। साल 2016 में आम जनता के लिए शुरू हुई इस सफारी में सबसे पहले मादा बाघिन विंध्य को लाया गया था, जिसकी उम्र अधिक होने से बाद में मौत हो गई थी।स्थापना से लेकर अब तक सफारी में कुल तीन सफेद बाघों की मौत हो चुकी है।

लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा टीपू

टीपू का कद-काठी और उसकी चमकदार सफेद चमड़ी पर्यटकों के बीच विशेष आकर्षण का कारण थी। सफारी पहुंचने वाले हर सैलानी की नजरें उस पर टिक जाती थीं। यही वजह थी कि उसकी तबीयत खराब होने की खबर आते ही सफारी प्रबंधन से लेकर स्थानीय लोग तक चिंतित हो गए थे। अब उसकी मौत ने सफारी और पर्यावरण प्रेमियों को गहरा झटका दिया है। मुकुंदपुर सफारी का नाम विंध्य क्षेत्र में रहने वाले व्हाइट टाइगर मोहन की वजह से विश्व मानचित्र पर है। मोहन को वर्ष 1951 में महाराजा मार्तंड सिंह जूदेव ने खोजा था। उसी की वंशावली को आगे बढ़ाते हुए सफारी का निर्माण कराया गया और इसे 2016 में जनता के लिए खोला गया। लेकिन लगातार बाघों की मौत सफारी के भविष्य पर सवाल खड़े कर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि सफेद बाघों की देखभाल बेहद संवेदनशील होती है। उनकी जीवनशैली, खानपान और स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना जरूरी है। टीपू की मौत के बाद अब सफारी प्रबंधन के सामने चुनौती है कि शेष बचे बाघों को लंबे समय तक सुरक्षित कैसे रखा जाए।

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