
रिपोर्ट : अवनीश उपाध्याय
आजमगढ़ : मैं शिबली एकेडमी हूं. 1914 में अल्लामा शिबली नोमानी द्वारा मेरी नींव रखने के बाद से अब तक न जाने कितनी हस्तियों ने यहां आकर तालीम ली। मेरी ओर से बच्चों की तालीम में कोई भेदभाव नहीं किया गया। इसी का नतीजा है कि आज यहां का हर बच्चा देश दुनिया के हर कोने में अपनी विद्या की रोशनी फैला रहा है। वह चाहे विज्ञान का क्षेत्र हो या सामाजिक सरोकार का, सब जगह यहां के होनहारों का डंका बज रहा है। इस बुलंदी से मुझे खुशी मिलती है, लेकिन इससे भी अधिक सुकून हमें आजादी के दीवानों को सीने से लगाने में मिली। आजादी के हर दीवाने के लिए मेरा दरबार खुला रहा। उन्हें भी मुझसे इस कदर लगाव था कि वह भी यहां बेधड़क आते थे और चैन की नींद सोते थे। जंग की नीति निर्धारण करते थे और मेरी ओर से उनकी सलामती ही ख्वाहिश रही।
आजमगढ़ जिले में स्थापित शिबली एकेडमी ऐसी जगह है, जहां पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर मौलाना अब्दुल कलाम सरीखे न जाने कितने सपूत आए होंगे। इसमें से सबसे सुखद क्षण रहा महात्मा गांधी का आना। देश में असहयोग आंदोलन की सफलता के बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन की दुंदुभी बज चुकी थी। उसी दौरान महात्मा गांधी के पैर आजमगढ़ की सरजमीं पर भी पड़े। 1930 के आस-पास मेरे यहां यानी शिबली नेशनल कॉलेज परिसर में उनका आगमन हुआ। उन्होंने तालीम की इस स्थल को चरण स्पर्श किया। हमने भी दिल से लगाया। मैं निहाल हो गया उनकी यश, कीर्ति का विश्व में गुणगान हो रहा था उनका आत्म विश्वास, माथे पर स्वयं आजादी को परिलाक्षित कर रहे थे। वह परिसर में आवभगत से गदगद थे। इतना ही नहीं परिसर के कुएं के चबूतरे पर बैठकर उन्होंने स्नान भी किया।
महात्मा गांधी के शिबली एकेडमी परिसर में आगमन इतिहास के पन्ने में सुनहरे अक्षरों से अंकित है। इस कॉलेज में उन्होंने रात गुजारी तो वहीं परिसर में कुएं के चबूतरे पर स्नान भी किया। कॉलेज प्रबंधन की अगवानी व खिदमत से खुश होकर गांधीजी ने शुक्रिया भी अदा किया। शिबली कॉलेज की लाइब्रेरी में उर्दू में लिखा उनका आमंत्रण पत्र आज भी मौजूद है।
आप को बतादें उस दौर में शिबली कॉलेज आजादी के दीवानों की शरणस्थली रही। शिबली कॉलेज में आने का पुख्ता प्रमाण मिलता है। हालाकि आज शिबली एकेडमी में शोध कर रहे छात्र आज भी गांधी जी को याद करते हैं और उनको अपना प्रेरणा स्त्रोत मानते है।