
रिपोर्ट : रोशन मिश्रा
वाराणसी : लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों को मिली भारी हार के बाद उनके बीच भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ ‘विपक्षी पार्टी नंबर 1’ बनने की होड़ का पहला राउंड प्रियंका गांधी वाड्रा और उनकी कांग्रेस पार्टी के नाम गया है. सोनभद्र के नरसंहार मामले में सपा और बसपा का शीर्ष नेतृत्व जब महज लखनऊ से बयानबाजी तक ही सीमित है, तब कांग्रेस की ओर से खुद प्रियंका गांधी ने जमीन पर उतर कर यूपी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. ज़िससे कांग्रेसी उत्साहित हैं और सोनभद्र, मिर्जापुर, वाराणसी के अलावा यूपी के कई शहरों-कस्बों में नारेबाजी करते हुए कांग्रेस के नेता-कार्यकर्ता सड़कों पर उतर गए. यूपी सरकार द्वारा प्रियंका को सोनभद्र जाने से रोकने की खबर राष्ट्रीय सुर्खियां बन रही हैं.
विपक्षी दल के तौर पर ऐसे तेवर दिखाने के लिए मुलायम सिंह यादव के दौर वाली समाजवादी पार्टी को याद किया जाता है. नब्बे के दशक में कुशीनगर जिले (तब देवरिया जिला) के रामकोला में किसानों पर पुलिस फायरिंग का मामला रहा हो या फिर बसपा की सरकार में सपा कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी, मुलायम हमेशा सड़क पर उतर कर संघर्ष की राजनीति करने के हिमायती रहे. वे कार्यकर्ताओं में हौसला भरने के लिए समाजवादी चिंतक डाॅ. राम मनोहर लोहिया की उस बात का हवाला देते रहे हैं, जिसमें डाॅ. लोहिया कहा करते थे – “जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं.” नतीजतन मुलायम के दौर वाली सपा विपक्ष में रहते हुए सड़क पर संघर्ष करती दिखती रही. अखिलेश यादव के दौर की सपा आंदोलनों से दूर है.
दरअसल लोकसभा चुनावों के बाद सपा और बसपा का गठबंधन टूट जाने के बाद हालात फिर वैसे ही हैं जैसे कि 2017 में भाजपा की सरकार बनते वक्त थे. यानी तीनों प्रमुख पार्टियां अलग-अलग हैं. ऐसे में चुनावी रूप से कौन भाजपा को चुनौती देगा उसके लिए इसी साल होने वाले विधानसभा की 12 सीटों के उपचुनाव को पैमाना माना जा रहा है जिसमें हर विपक्षी दल अलग-अलग लड़ेगा लेकिन उपचुनावों से पहले सड़क पर संघर्ष के मामले में कांग्रेस बाजी मारती नजर आ रही है. सोनभद्र में दो पक्षों के संघर्ष में एक पक्ष की फायरिंग में मरने वाले सभी नौ लोग गरीब आदिवासी हैं और घटना के लिए जिला प्रशासन व पुलिस की लापरवाही सामने आने से योगी सरकार कटघरे में है. लिहाजा यह विपक्षी दलों के लिए सरकार को घेरने का बड़ा अवसर भी बना है. यूपी कांग्रेस में पूर्वांचल की प्रभारी प्रियंका गांधी ने इस मामले में सबसे ज्यादा सक्रियता दिखाते हुए अपनी पार्टी को चर्चा में ला दिया है.
खासकर वैसे माहौल में जब राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस बिना किसी नेतृत्व के दिशाहीन लग रही है. यूपी में प्रियंका और कांग्रेस लंबे दौर तक ऐसा माहौल बनाकर रख सकते हैं या नहीं, यही उसकी सबसे बड़ी चुनौती होगी क्योंकि पार्टी का संगठन नहीं के बराबर है. इतना ही नहीं सपा और बसपा इतनी आसानी से कांग्रेस को विपक्षी पाले में जगह बनाने देंगे इसमें शक है क्योंकि उनका संगठन कांग्रेस की तुलना में मजबूत है और चुनावी कामयाबी की उनकी संभावनाएं भी फिलहाल कांग्रेस की तुलना में ज्यादा है. वही राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस को अगर यूपी में पुनर्जीवित होना है तो उसे इसी तर्ज पर चलना होगा जैसा सोनभद्र प्रकरण में प्रियंका गांधी ने किया है.