“खबरी लाल” हिंदी दिवस विशेष ! कवि सम्राट,महान हस्ती अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध की धरोहर को सजोने में नाकाम हुए जिले के लोग

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रिपोर्ट : प्रिंस यादव

आजमगढ़ : खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य प्रिय प्रवास अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध किसी पहचान के मोहताज नहीं है। पूरी दुनिया उन्हें कवि सम्राट के रूप में जानती है। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए हिंदी साहित्य सम्मेलन ने उन्हें एक बार सम्मेलन का सभापति बनाया और विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया लेकिन इस महान हस्ती की धरोहर उनके पैृतक जिले के लोग ही नहीं संजो पाए। हरिऔध की जन्मस्थली खंडहर में तब्दील हो चुकी है तो उनके द्वारा शुरू किया गया स्कूल बंद हो चुका है। हरिऔध के नाम पर एक कला भवन तो बना था लेकिन बिल्डिंग जर्जर होने के बाद जब 2013 में उसका दोबारा निर्माण शुरू हुआ तो आज तक पूरा नहीं हो पाया।

हरिऔध जी का जन्म निजामाबाद कस्बे में पंडित भोलानाथ उपाध्याय के घर हुआ था। उन्होंने सिख धर्म अपना कर अपना नाम भोला सिंह रख लिया था, वैसे उनके पूर्वज सनाढ्य ब्राह्मण थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा निजामाबाद एवं आजमगढ़ में हुई। पांच वर्ष की अवस्था में इनके चाचा ने इन्हें फारसी पढ़ाना शुरू कर दिया था। हरिऔध जी निजामाबाद से मिडिल परीक्षा पास करने के पश्चात काशी के क्वींस कालेज में अंग्रेजी पढ़ने के लिए गए, किंतु स्वास्थ्य बिगड़ जाने के कारण उन्हें कालेज छोड़ना पड़ा। उन्होंने घर पर ही रह कर संस्कृत, उर्दू, फारसी और अंग्रेजी आदि का अध्ययन किया और 1884 में निजामाबाद के मिडिल स्कूल में अध्यापक हो गए। उन्होंने आजमगढ़ में एक स्कूल भी खोलवाया। वहां भी वे अध्यापन के लिए जाने थे। इस दौरान साहित्य की सेवा भी करते रहे। कहते हैं कि प्रिय प्रवास का काफी हिस्सा उन्होंने स्कूल और नगर के अठवरिया मैदान स्थित मंदिर में बैठकर लिखा। वर्ष 1947 में उनका निधन हो गया। यह गर्व करने से नहीं चूकते कि यह कवि सम्राट हरिऔध की धरती है। इस कस्बे में यह हर आदमी जानता है कि हरिऔध की खंडहर हो चुकी जन्मस्थली कहां है लेकिन उस खंडहर को संवारने और कवि सम्राट की स्मृतियों को सहेजने के लिए उनके कस्बे वालों ने कोई प्रयास क्यों नहीं किया। कवि हरिऔध के टूटे-फूटे घर के ठीक बगल में जगत प्रसिद्ध चरणपादुका गुरुद्धारा है। जहां गुरु तेग बहादुर और गुरुगोविंद, गुरूनानक देव आकर तपस्या कर चुके हैं। हिंदी कविता में खड़ी बोली को सशक्त स्थान दिलाने वालों में प्रमुख स्थान रखने वाले कवि हरिऔध के इस कस्बे में अभी तक एक भी महाविद्यालय और प्रतिमा की स्थापना नहीं हो सकी। नगर में कला भवन का निर्माण वर्षो से आधा अधूरा पड़ा है। अठवरिया में उनके नाम पर खुला बंद हो गया है।

जिलाधिकारी का कहना है कि कला भवन के निर्माण के लिए समिति का गठन कर दिया गया। शासन को इस बावत जानकारी भी दे दी गयी है। जिलाधिकारी ने उम्मीद जताई की जल्द ही धन अवमुक्त होते ही निर्माण कार्य पूरा हो जायेगा। जिलाधिकारी ने कहा कि नयी पीढ़ी के युवाओं को हरिऔध जी रचनाओं से जोड़ने का उद्देश्य है। इसके लिए स्कूल और कालेजो में पुस्तकालय की स्थापना करायी जायेगी।