KHABRI LAL : काशी के कोतवाल के सामने बेअसर दिखी बड़ी विपदा,बदल गया बाबा का कलेवर

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रिपोर्ट : रोशन मिश्रा

वाराणसी :- काशी के इतिहास में पचास साल बाद काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव ने अपना कलेवर छोड़ दिया है। माना जाता है कि जब देश और दुनिया में कोई बड़ी विपदा आने वाली होती है तो बाबा उसे अपने ऊपर ले लेते हैं और इस कारण बाबा का कलेवर खुद व खुद छूट जाता है। केंद्रीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय महासचिव व मंदिर के व्यवस्थापक पं0 अजीत मिश्रा ने बताया कि करीब 14 साल पहले बाबा ने आंशिक रूप से अपना कलेवर छोड़ा था। जबकि पचास साल पहले 1971 में काशी के कोतवाल ने पूर्ण रूप से अपना कलेवर छोड़ दिया था। भोर में गर्भगृह के कपाट खुलने के बाद इसकी जानकारी हुई। पं0 अजीत मिश्रा ने बताया कि हमारे बुजुर्गों ने बताया था कि जब बाबा खुद अपना पूर्ण कलेवर छोड़ दें, तब समझिए कि बाबा ने देश और दुनिया की कोई बड़ी विपदा अपने ऊपर ले ली और लोगों को इस विपदा से बचा लिया।

काल भैरव काशी के कोतवाल हैं। मान्यता है कि यहां खुद यमराज की भी नहीं चलती हैं। बाबा काल भैरव के महादेव अवतार हैं और महादेव ने उन्हे काशी का कोतवाल बनाया है। बिना काल भैरव के यहां से यमराज भी किसी को नहीं ले जा सकते हैं। खुद नवग्रह बाबा की शरण में है। यहां आमतौर पर हमेशा बाबा अपने सिंदूरी रंग के कलेवर में विराजमान रहते हैं। रोज की तरह शयन आरती के बाद मंदिर के महंत और अर्चकों ने गर्भगृह को बंद कर दिया। लेकिन जब सुबह भोर में गर्भगृह को अर्चकों ने खोला तो सभी दंग रह गए। मंदिर के व्यावस्थाप पं0 अजीत मिश्रा ने बताया कि बाबा ने अपना कलेवर छोड़ दिया था और बाल रूप में नजर आए। आनन-फानन में सभी महंतों और अर्चकों को मंदिर बुलाया गया और घटना से वाकिफ कराया। इसके बाद बुजुर्ग अर्चकों और महंत परिवार के लोगों ने धार्मिक मान्यता बताते हुए इसके विसर्जन की बात कहीं। फिर महंत और सभी अर्चकों ने भारी भरकम कलेवर को लाल कपड़े में बांधकर कंधे और सिर पर लेकर पंचगंगा घाट पर मां गंगा में विसर्जित किया। इस दौरान काल भैरव गली से लेकर पंचगंगा घाट के रास्ते तक घंटे घड़ियाल, डमरू और शंखनाद गूंजते रहे। इस दौरान बाबा के दरबार के पट बंद रहे। कलेवर छोड़ने के बाद अर्चकों द्वारा काल भैरव का बाल स्वरूप श्रंगार और विशेष पूजन अर्चना की गई। क्योंकि ये घटना धीरे धीरे काशी में फैल गई। इसलिए बड़ी संख्या में लोग मंदिर पहुंच गए। श्रंगार और अर्चना के बाद बाबा के कपाट खोल दिए गए। दोपहर बाद बाबा काल भैरव का सिंदूर मोम और देशी घी से लेपन करने के बाद उनके बाल रूवरूप को परंपरागत तरीके से चांदी के मुखौटा लगाकर श्रंगार हुआ और महाआरती की गई।

बाबा के कलेवर छोड़ने के बाद बड़ी संख्या में काशी समेत पूरे देश के लोग काशी के कोतवाल की चौखट पर पहुंच रहे हैं और खुद के ऊपर से उतारा करा रहे हैं। यहां अर्चक और ब्राह्मण मंत्रोच्चारण के साथ दंड लेकर भक्तों को किसी मुसीबत से उतारा कर रहे हैं।