
दल बदल के माहिर रमाकांत ने कैरियर डूबता देख लिया यह फैसला
रिपोर्ट : अवनीश उपाध्याय
आजमगढ़ : राजनीति में हाशिए पर पहुंच चुके पूर्वाचंल के बाहुबली पूर्व सांसद रमाकांत यादव वर्ष 2004 में सपा से बाहर होने के बाद ली गयी कसम को भूल राजनीतिक स्वार्थ के लिए पूर्व सीएम अखिलेश यादव के सामने नतमस्तक हो गए है। रमाकांत यादव छह अक्टूबर को कांग्रेस को बाय-बाय कह सपा का दामन थामेंगे। रमाकांत और उनके समर्थक इसकी तैयारी में जुटे हुए है। जब सपा में वापसी की चर्चा के बीच लोगों ने बाहुबली को वर्ष 2004 में ली गयी शपथ याद दिलायी कि मैं तो दूर अब सपा में मेरी लाश भी नहीं जाएगी तो उन्होंने दो टूक कहा कि लाश नहीं मैं तो जिंदा सपा में वापस जा रहा हूं। राजनीति के जानकर इसे रमाकांत की मजबूरी मान रहे है।
वर्ष 1984 में जगजीवन राम की पार्टी से राजनीतिक जीवन की शुरूआत करने वाले रमाकांत यादव राजनीतिक स्वार्थ के माहिर माने जाते हैं। एक दौर था जब रमाकांत मुलायम सिंह के सबसे करीबी माने जाते थे। गेस्ट हाउस कांड में भी मायावती के साथ दुव्र्यवहार के मामले में रमाकांत का नाम सामने आया था। बाद में सीएम रहते हुए मुलायम ने रमाकंत को हत्या के आरोप से बचाया था लेकिन रमाकांत यादव मुलायम सिंह के भी नहीं हुए और वर्ष 2004 में राजनीतिक लाभ के लिए सपा को छोड़ बसपा के साथ चले गए थे। वैसे रमाकांत बसपा के भी बनकर नहीं रह सके और सांसद बनने के बाद वर्ष 2007 में पार्टी छोड़ दिया और वर्ष 2008 में बीजेपी में शामिल हो गए। वर्ष 2009 में रमाकांत बीजेपी के टिकट पर सांसद बने लेकिन एक बार फिर राजनीतिक स्वार्थ और सवर्ण विरोधी छवि उनके रास्ते का रोड़ा बनी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और सीएम योगी के खिलाफ बयानबाजी का परिणाम रहा कि बीजेपी ने वर्ष 2019 में रमाकांत को पार्टी से टिकट नहीं दिया और मजबूरी में रमाकांत ने कांग्रेस का दामन थामा। सपा से समझौते के कारण कांग्रेस ने भी रमाकांत को आजमगढ़ से टिकट नहीं दिया बल्कि भदोही से मैदान में उतार दिया जहां रमाकांत की जमानत जब्त हो गयी। इसके बाद से ही उन्हें अपना राजनीतिक कैरियर समाप्त होता दिखने लगा था। चुनाव के बाद से ही रमाकांत अपना कैरियर बचाने के लिए अखिलेश को मनाने में लगने थे।
वही इस मामले में भाजपा के जिला महामंत्री का कहना है कि रमाकांत भदोही से हार चुके है राजनीति में उनके लिए कोई जगह नहीं बची। उनकी दुकान बंद हो चुकी है। अब उनके पास कोई चार नहीं है इसलिए वे सपा में जाकर अपनी राजनीतिकि हैसियत बचाने की कोशिस कर रहे हैं। जो अब बचने वाली नहीं है। सपा में लाश भी न जाने के सवाल पर ब्रजेश ने कहा कि यह रमाकांत की फितरत है। सपा में मेरी लाश नहीं जाएगी ऐसा उन्होंने कसम खाया था इस तरह की कस्में उनके लिए आम बात है। राजनीतिक रूप से वे मृत हो चुके है। उनकी राजनीति में कोई जगह नहीं बची है।