KHABRI LAL : आखिर बिगड़ ही गया माफिया धनंजय सिंह का समयचक्र,पुलिस की डर से हुआ अंडरग्रॉउंड

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स्पेशल रिपोर्ट : अवनीश उपाध्याय

लखनऊ : जरायम की दुनिया का वह नाम जिसका जिक्र आते ही गैंगवार, रक्त से धरा लाल होने की कल्पना से आम इंसान सिहर जाता है आज वह खुद पुलिस से अपनी जान बचाने के लिए दर बदर भटक रहा है। जी हाँ हम बात कर रहे हैं जरायम की दुनिया के उस माफिया का जो आज खुद दहशत के साये में जी रहा है। जिसकी धमक से उत्तर प्रदेश हिल जाता था आज वही माफिया भगौड़ा धनंजय सिंह के नाम से जाना जा रहा है। हालात यूँ है कि उसके साथ परछाई की तरह साथ चलने वाले पुलिस की कार्रवाई की खौफ से उसे अकेला छोड़ अपनी मोबाइल बंद कर अंडरग्राऊंड हो गए है।

कभी उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली तक तमाम राजनेताओं के किचेन कैबिनेट तक घुसपैठ रखने वाले जौनपुर के पूर्व सांसद बाहुबली धनंजय का समयचक्र अब बिगड़ता दिखाई दे रहा है। माफिया मुख्तार के करीबी रहे अजीत सिंह की राजधानी में हुई हत्या को अंजाम देने के बाद बाहुबली ने सोचा कि वाराणसी में हुई ठेकेदार नितेश सिंह बबलू की हत्या की तरह इस हत्याकांड को भी वह अपने रसूख के बल पर मैनेज कर लेगा लेकिन यहां दांव उल्टा पड़ गया। उत्तर प्रदेश की राजधानी में जिस तरह अजीत की हत्या हुई, सीधे मुख्यमंत्री के माफियाराज के खात्मे के मंसूबे को चैलेंज था। पुलिस के जांच की आंच शूटर का इलाज करने वाले डॉक्टर एके सिंह से होते हुए धनंजय के गिरेबां तक जा पहुंची। हत्याकांड में नाम आने के बाद से लग्जरी गाड़ियों के काफिले से चलने वाले बाहुबली धनंजय फरार चल रहा है।

जानिए भगौड़े धनंजय सिंह का आपराधिक इतिहास ..

बताते चलें कि 1990 में हाइस्कूल में पढऩे के दौरान लखनऊ के महर्षि विद्या मंदिर के एक पूर्व शिक्षक गोविंद उनियाल की हत्या में पहली बार धनंजय का नाम आया, हालांकि पुलिस इस मामले में आरोप साबित नहीं कर पाई। यहीं से उसपर आपराधिक मामलों से जुड़े आरोप लगने शुरू हुए। 1992 में जौनपुर के तिलकधारी सिंह इंटर कॉलेज से बोर्ड की परीक्षा दे रहे धनंजय पर एक युवक की हत्या का आरोप लगा और परीक्षा के अंतिम तीन पेपर धनंजय सिंह ने पुलिस हिरासत में दिया। बताते हैं धनंजय बचपन से ही दबंग प्रवृत्ति का था। नाम कमाने के लिए अपराध का सहारा लेने में उसे कोई गुरेज नहीं था। इंटर करने के बाद लखनऊ यूनिवर्सिटी में स्नातक में प्रवेश के साथ ही छात्र राजनीति और सरकारी विभागों के टेंडर में वर्चस्व की होड़ में धनंजय का नाम कई गंभीर आपराधिक मामलों में जुड़ा। स्नातक पूरा करने के साथ-साथ हत्या की साजिश और प्रयास, लूट जैसे गंभीर मामलों से जुड़े आधा दर्जन मुकदमे लखनऊ के हसनगंज थाने में दर्ज हो गए। अपराध जगत में धनंजय का नाम तब तेजी से उभरा, जब 1997 में बीएसपी नेता मायावती के शासनकाल में बन रहे आंबेडकर पार्क से जुड़े लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर गोपाल शरण श्रीवास्तव की ठेकेदारी के विवाद में हत्या कर दी गई। इस प्रकरण में आरोपी धनंजय फरार हो गया और सरकार ने उसपर 50 हजार रु. का इनाम रखा। दो साल बाद 1999 में धनंजय ने कोर्ट में आत्मसमर्पण किया, लेकिन इस दौरान उनका नाम 1997 में राजधानी के चर्चित ला मार्टिनियर कॉलेज के असिस्टेंट वॉर्डन फ्रेड्रिक गोम्स हत्याकांड और हसनगंज थाना क्षेत्र में हुए संतोष सिंह हत्याकांड में भी जुड़ा। यही नहीं लखनऊ यूनिवर्सिटी के छात्र नेता अनिल सिंह ‘‘वीरू’’ की हत्या की कोशिश जैसे आरोप भी लगे। कोर्ट में आत्मसमर्पण के बाद भी इंजीनियर हत्याकांड मामले में पुख्ता साक्ष्य न होने की वजह से धनंजय बरी हो गया। पुलिस ने इस हत्या के बाद फरार धनंजय और उनके तीन साथियों को 1998 में भदोही में एनकाउंटर में मार गिराने का दावा किया था। बाद में खुलासा हुआ कि मारे गए चारों युवक निर्दोष थे। इस प्रकरण में 22 पुलिस कर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ, जो अब भी जिला सत्र न्यायालय में लंबित है। जेल में रहने के दौरान ही धनंजय एक बार फिर चर्चा में उस समय आया जब 2000 में हजरतगंज के पॉश इलाके में तत्कालीन स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. बच्ची लाल की हत्या हुई। धनंजय पर हत्या की साजिश का मुकदमा दर्ज हुआ, लेकिन अदालती कार्रवाई के दौरान मजबूत साक्ष्य और गवाह पेश न किए जा सके। 2002 में विधायक बनने के बाद धनंजय सिंह का प्रभाव बढ़ा और उनके राजनैतिक विरोधी निशाने पर आ गए। 2 अक्तूबर, 2004 को जौनपुर में पुलिस लाइन के समीप टीडी कॉलेज के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह ‘‘बबलू’’ पर धनंजय सिंह के समर्थकों ने जानलेवा हमला किया। पुलिस ने फौरन कार्रवाई करते हुए तीन हमलावरों को मार गिराया।
2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान धनंजय के विरोध में खड़े जस्टिस पार्टी के प्रत्याशी बहादुर सोनकर का शव संदिग्ध परिस्थितियों में जौनपुर के पचहटिया इलाके में एक बबूल के पेड़ से लटका मिला था। इस मामले में भी धनंजय की भूमिका को लेकर पुलिस ने पड़ताल की थी। अक्तूबर, 2010 और अप्रैल, 2011 में लखनऊ में हुए हाइप्रोफाइल सीएमओ हत्याकांड में भी सीबीआइ की शक की सुई धनंजय सिंह की ओर घूमी, लेकिन केंद्रीय जांच एजेंसी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी।
जौनपुर में धनंजय को असल चुनौती यहां के विख्यात तांत्रिक डॉ. रमेश चंद्र तिवारी से मिली। सुइया ब्लॉक के सरपतहा थाने के ऊंचागांव में रहने वाले डॉ. तिवारी लगातार धनंजय के आपराधिक कृत्यों के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। 14 नवंबर, 2012 को डॉ. तिवारी की हत्या के बाद उनके सहयोगी और ऊंचागांव निवासी विजय सिंह ने कोर्ट में दिए गए अपने बयान में धनंजय सिंह को आरोपी बनाया। इतना ही नहीं बागपत जेल में पूर्वांचल के कुख्यात अपराधी मुन्ना बजरंगी हत्याकांड में भी धनंजय का नाम तेजी से सामने आया हालांकि पुलिस की जाँच में इसे क्लीनचिट मिल गया तो वही वाराणसी के ठेकेदाए नितेश सिंह बबलू हत्याकांड में भी पुलिस इसके गिरेबां तक नहीं पहुँच पाई और धनंजय इस मामले में भी बच निकला। लेकिन माफिया का समयचक्र अब बदल गया है। खादी की आड़ में खाकी को ठेंगा दिखा रहे माफिया के पीछे यूपी पुलिस पड़ गयी है। और जल्द ही माफिया धनंजय सलाखों के पीछे होगा।