खबरीलाल पर भंवरनाथ मंदिर का अद्भुत रहस्य ! पुलिस के बड़े अधिकारी ने भी इस शिवमंदिर में टेका मत्था,मांगी मन्नत

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डेस्क रिपोर्ट : अवनीश उपाध्याय

आजमगढ़ : देश-विदेश में स्थापित शिव लिंगों में जहां काठमाण्डू के बाबा पशुपति नाथ, काशी के बाबा विश्वनाथ और देवघर के बाबा बैजनाथ धाम का विशेष महत्व माना जाता है वहीं आजमगढ़ के लोगों के लिए बाबा भंवरनाथ के दर्शन-पूजन का खास महत्व है। मन्दिर के बारे में मान्यता है कि दर्शन-पूजन करने से बाबा भंवरनाथ अपने भक्तों को संकटों मुक्ति दिलाते हैं। शायद यही वजह है कि शिव आराधना का कोई भी पर्व आता है तो इस मंदिर में मत्था टेंकने के लिए भक्तों का हुजूम लगा रहा रहा है। वही जिले और आस-पास के कांवरियें बिना बाबा भंवरनाथ के जलाभिषेक किये नहीं जाते है।

एसपी सिटी पंकज कुमार पाण्डेय ने टेका मत्था

आजमगढ़ जिले के भंवरनाथ चौराहे पर बाबा भंवरनाथ का प्राचीन शिव मंदिर है। इस प्राचीन शिव मन्दिर की स्थापना के बारे में आसपास के लोग बतातें है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व यहां एक वृद्ध सन्त आया करते थे और यहां पर अपनी गाय चराते थे। एक तरफ उनकी गाय चरती थी तो दूसरी तरफ उस समय में वे वहीं पर बैठकर शिव का ध्यान करते थे। यही नहीं इस स्थान पर उनकी जो गाये रहती थी उनका दूध भी अपने आप गायब हो जाता था। कहा जाता है कि इसके बाद लोगों ने इस स्थान पर खुदाई शुरू की तो काफी संख्या में भौरें निकलने लगे, लेकिन खुदाई जारी रही तो लोगों ने जमीन के नीचे एक शिवलिंग को देखा। जिसके बाद से ही यहां पूजा-अर्चना होने लगी। साथ भौरों के निकलने के कारण इस मंदिर का नाम भंवरनाथ रखा गया।

श्रद्धालुओं की लगी लंबी कतार

4 अक्टूबर 1951 को मन्दिर की नींव रखी गयी जो सात वर्षों बाद 13 दिसम्बर 1958 में बनकर तैयार हो गया। महाशिवरात्रि हो या फिर सावन का महीना, यहां लोग एक बार पहुंचकर बाबा का दर्शन करना नहीं भूलते। अधिकारियों से लेकर आमभक्त बाबा का दर्जन पूजने करने के लिए आते है। यहां तक कि इस क्षेत्र से बाबा धाम जाने वाले कांवरियें भी रवाना होने से पहले यहां जलाभिषेक करते हैं। कहा जाता है कि शहर की सीमा के अन्दर स्थापित सभी शिवालयों में दर्शन-पूजन के बाद यहां आये बगैर शिव की आराधना पूरी नहीं मानी जाती। लोगों का मानना है कि नाम के अनुसार यहां दर्शन करने से किसी भी संकट से मुक्ति मिल जाती है और बाबा भंवरनाथ अपने भक्तों की वर्ष पर्यन्त सुरक्षा करते हैं। यहां शिवरात्रि के दिन बड़ा मेला भी लगता है और परम्परा के अनुसार शिव विवाह का आयोजन किया जाता है। सावन के महीने में यहां श्रद्धालुओं का प्रतिदिन आवागमन होता है लेकिन सोमवार को यहां काफी भीड़ देखी जाती है। गर्भगृह के चारो द्वार श्रद्धालुओं से भरे होते हैं और दरवाजा छोटा होने के कारण घण्टों दर्शन के लिए लाइन लगानी पड़ती है। यहां मिन्नतें पूरी होने के बाद लोग बाबा को कड़ाही भी चढ़ाते हैं और वर्ष पर्यन्त सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर में परिणय सूत्र में बंधने वाले जोड़ो की शादीयां कभी टूटती नहीं और उनके परिजन और बच्चें हमेशा खुशहाल रहते है।