
जिलों में सरकार के आंख-कान कहे जाने वाले डीएम और एसपी को मुख्यमंत्री की मीटिंग में फोन अंदर ले जाने पर रोक लगा दिया गया है। ये नया वर्क कल्चर योगी सरकार के दो साल गुजर जाने के बाद शुरू हुआ है. सवाल इस बात का है कि टेक्नोलॉजी के जमाने में जब पल-पल की खबर और जानकारियां मोबाइल पर रहती है, तो ऐसे में मीटिंग रुम में मोबाइल की “नो इंट्री” का क्या मतलब है ? क्या ये शुरुआत अनुशासन के तौर पर किया गया है, या फिर सरकार को अपने ही मंत्रियों और अधिकारियों पर भरोसा नहीं रहा.योगी सरकार ने जब सत्ता संभाली तो उन्होंने सबसे पहले कानून व्यवस्था को रास्ते पर लाने की मुहिम छेड़ी. ‘ठोको नीति’ पर चलते हुए ताबड़तोड़ एनकाउंटर शुरू हुए. देखते ही देखते अपराधियों में दहशत बन गई. लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद अचानक यूपी की कानून व्यवस्था बेपटरी है. एक के बाद एक पॉलिटिकल मर्डर और रेप की घटनाओं से सरकार की साख पर सवाल उठने लगे. जिससे योगी भी तिलमिला उठे और नाराजगी चेहरे पर दिखने लगी. इन सब के बीच 12 जून को जब योगी ने प्रदेश के सभी जिलों के डीएम और पुलिस कप्तान को लखनऊ तलब किया, तो सुगबुगाहट तेज हो गई कि योगी जी अपने पुराने फॉर्म में हैं.
यानी गुस्सा किसी न किसी पर उतरेगा ही. लखनऊ में मीटिंग के दौरान अधिकारियों के मोबाइल को बाहर रख दिया गया. जिनमें डीजीपी भी शामिल थे. मोबाइल बैन की खबरों के बाद योगी सरकार को लेकर चर्चा का दौर तेज हो गया. सवाल उठ रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ ने आखिर क्यों अधिकारियों के मोबाइल पर बैन लगाया ?
जानकार बता रहे हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद अपराध का ग्राफ बढ़ा है, उससे योगी आदित्यनाथ को अपने इमेज की चिंता सताने लगी है. क्योंकि कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर जिस तरह से सरकार ने पिछले दो सालों में काम किया है, उसकी तारीफ हर किसी ने की. लेकिन चुनाव के बाद पासा पलट गया है. पिछले पंद्रह दिनों में यूपी में कानून-व्यवस्था ध्वस्त हुई है, उससे सीएम का परेशान होना लाजमी हैं.