
बेंगलुरू। वित्त वर्ष 2019-20 के लिए पूर्ण आम बजट कुछ खास होगा। सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था और जरूरत से कम नई नौकरियों की चुनौती से निपटने के लिए सरकार मौजूदा और अगले वित्त वर्ष के लिए उधारी का लक्ष्य थोड़ा बढ़ा सकती है। अर्थशास्त्रियों का तो कम से कम यही मानना है।
रॉयटर्स की तरफ से अर्थशास्त्रियों के बीच कराए गए एक सर्वे की रिपोर्ट में कहा गया है कि बजट में समाज कल्याण के मोर्चे पर ज्यादा खर्च के प्रावधान हो सकते हैं। 28 जून से लेकर 2 जुलाई के बीच कराए गए सर्वेक्षण में 45 से अधिक अर्थशास्त्री शामिल किए गए।
इनमें से ज्यादातर का मानना है कि सरकार राजकोषीय घाटे का लक्ष्य बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.5 प्रतिशत तक कर सकती है। वित्त वर्ष 2020-21 के लिए यह लक्ष्य 3.3 प्रतिशत रखा जा सकता है। अंतरिम बजट में सरकार ने राजकोषीय घाटे का लक्ष्य मौजूदा वित्त वर्ष के लिए 3.4 प्रतिशत और अगले वित्त वर्ष के लिए 3.0 प्रतिशत रखा था।
सरकारी कर्ज पहले से ज्यादा
कैपिटल इकोनॉमिक्स के वरिष्ठ अर्थशास्त्री शीलन शाह ने कहा, “हमारी राय में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन राजकोषीय अनुशासन ढीला करेंगी और इस वित्त वर्ष व अगले वित्त वर्ष के लिए घाटे का लक्ष्य कुछ बढ़ाएंगी।” उन्होंने कहा कि उभरते बाजारों के मानकों के लिहाज से भारत में सरकारी कर्ज का स्तर पहले से ज्यादा है। ऐसे में आगे और उधारी बढ़ने का मतलब होगा बॉन्ड यील्ड में हल्की तेजी। सीतारमन शुक्रवार को बजट पेश करने जा रही हैं।
7.1 खरब से ऊपर जा सकती है उधारी
सर्वे में हिस्सा लेने वाले करीब 60 प्रतिशत अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस बजट का फोकस राजकोषीय अनुशासन से कहीं ज्यादा राजकोषीय विस्तार पर होगा। जब अर्थशास्त्रियों से पूछा गया कि क्या सरकार उधारी का स्तर 7.1 खरब रुपए तक सीमित रखेगी, जैसा कि फरवरी में पेश अंतरिम बजट में कहा गया था, 38 में से 25 ने इसका जवाब “हां” में दिया।
वास्तविक घाटा ज्यादा
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज प्राइमरी डीलरशिप के मुख्य अर्थशास्त्री ए. प्रसन्ना ने कहा, “यदि आप बजट अनुमान के साथ खर्च को मिलाएंगे तो पाएंगे कि वास्तविक राजकोषीय घाटा ज्यादा है। वित्त वर्ष 2018-19 के लिए हमारा अनुमान करीब 5 प्रतिशत है।”
टैक्स से आय में कमी
हाल के वर्षों में सरकार ने बजट घाटा सीमित रखने में कामयाबी हासिल की है। इसके लिए ईंधन पर टैक्स बढ़ाया गया और सबसिडी में कटौती की गई। लेकिन, सीतारमन के समक्ष अलग तरह की चुनौती है। उन्हें ऐसे समय राजकोषीय कौशल दिखाते हुए अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाना है, जब टैक्स से होने वाली आय में आशंका से ज्यादा कमी आई है।बजट खर्च बढ़ाने पर ये होगा- खपत बढ़ने से अर्थव्यवस्था की सुस्ती टूटेगी- बॉन्ड यील्ड में हल्का इजाफा हो सकता है- नई नौकरियों के मौके बढ़ सकते हैं।